बिजली - मेरा मानना है कि तीन प्रकार की होती है:
१. प्राकृतिक बिजली - जो बादलों में चमकती है।
२. मानव निर्मित बिजली - जो घरों में पंखे चलाती है।
३. याना गुप्ता की बिजली - जो प्रकृति ने मानव में भर दी है (बाबु जी ज़रा धीरे चलो, बिजली खड़ी) ।
पिछले हफ्ते ही पुणे पहुँचा और ढाई साल बाद यह अनुभव किया कि बिजली के बिना इंसान की नींद कैसे ख़राब होती है। बिजली गुल होते ही मच्छर अपने तानपुरे लेकर गाजे-बाजे के साथ आपका मनोरंजन करने पहुँच जाते हैं और अब यही आपके साथी होते हैं - इनमें से ही अपने अपने मनपसंद गायकों को चुन लीजिये और रात भर उनके साथ गुन गुनाइये।
वैसे बिजली के बिना रहने का अनुभव मैं बहुत पहले से करता आया हूँ, पर जब कल रात को फिर से मच्छरों ने मुझ पर हमला किया तो मुझे अपने साथ हुए सारे ऐसे हादसों का स्मरण हो आया। सबसे पहले याद आई मुझे रेल विहार की वह रातें जो इतनी वीरान और भूतिया थीं की सोच कर ही डर लगे। हम चार लोग (मैं, अभिषेक अस्थाना, प्रियांशु बहुगुणा और अमित भरद्वाज) उस सरकारी आवास में रहते थे। हमने कभी उस इलाके में न किसी लड़की को देखा था, न किसी हम उम्र लड़के को, देखा था तो सिर्फ़ बहुत छोटे छोटे बच्चों को या फिर बूढों को। वहाँ हमारी उम्र का कोई भी नहीं रहता था। आस पास कोई दुकान भी नहीं थी कि भूख लगे तो जा कर कुछ खा लें। हम दूसरी मंजिल पर रहते थे (D 4/9) और हमारी बालकनी से एक छोटा सा बगीचा दिखाई देता था जिसमे सिर्फ़ दो झूले थे। रात को जब बिजली जाती थी तो कोई माँ अपने छोटे छोटे बच्चों को लेकर झूले झुलाने के लिए ले आती थी। हैरानी की बात यह थी कि रात का कोई भी समय हो, कितना भी बजा हो, समाँ यही होता था और जब झूला झूलता था तो उसमें से ऐसे आवाज़ आती थी जैसे कोई भूतिया फ़िल्म कि शूटिंग चल रही हो। बच्चे रोते रहते थे (मैं सोचता था कि रात के दो बजे इन बच्चों को कोई और काम नहीं है रोने के सिवा) और झूला अपना गाना गता रहता था। दोनों मिलकर ऐसा माहौल बनाते थे कि अपने बाल नोचने का दिल करे।
रेल विहार की ही एक रात मैं कभी नहीं भूल सकता। हमारे पहले सेमेस्टर के इम्तिहान चल रहे थे। हमारे घर पर पढ़ाई का माहौल रहता था (अभिषेक और प्रियांशु जैसे दिग्गज जो रहते थे :P) इसलिए हमारा दोस्त प्रवेश भी इन दिनों हमारे घर पढ़ाई करने आ जाता था। अगले दिन अंग्रेजी का पेपर था और प्रवेश ने हमारे घर में प्रवेश किया और बिजली गुल। अब क्या किया जाए? हमने निर्णय लिया कि हम बिजली के खंभे के नीचे बैठ कर पढ़ाई करेंगे। निर्णय अनुसार, हम लोग एक खंभे एक नीचे बैठ कर पढ़ाई करने लगे लेकिन हमारे साथी मच्छरों ने भी हमारा साथ दिया। उन्हें बहुत समझाया कि भैया अभी पढने दो बाद में खेलेंगे, लेकिन मच्छरों को अपनी बे-इज्ज़ती बर्दाश्त नहीं हुई, हमारी एक न सुनी। हार कर हमने खम्बा बदला। हम खंभे बदलते रहे और मच्छर हमारे पीछे पीछे। लगभग एक घंटे तक यही पकड़ा पकड़ी का तमाशा चलता रहा। फ़िर हमने सोचा कि क्यों न कॉलेज में जा कर पढ़ाई की जाए?
अपने अरमानों को पंख लगाये, हम कॉलेज पहुंचे। वहाँ बहुत मुश्किल से गेट कीपर को पटाया, तो उसने कहा कि बाहर स्टेज पर ही बैठ कर पढ़ाई कर लो, अन्दर बिल्डिंग में नहीं जाना है। हम उसके निर्देशानुसार स्टेज पर चढ़ गए। अब स्टेज पर चढ़कर पढ़ाई कौन करता है भाई? स्टेज तो नाचने, गाने और ड्रामा करने कि जगह होती है। उन दिनों लड़कियों के हॉस्टल के लिए नए नए गद्दे आए थे और वो स्टेज पर ही रखे थे। बस लड़कों के शैतानी दिमाग से पेपर गायब हो गया। गद्दों के कवर फाड़ फाड़ कर उसमे पर्चियां बना बना कर डालनी शुरू कर दीं और पर्चियों पर लड़कियों के नाम संदेशे - किसको कौन लड़की अच्छी लगती है? कौन अच्छी नहीं लगती है? कौन किसे क्या कहना चाहता है? करीब दो घंटे वहाँ तफरी करने के बाद हम घर (रेल विहार) वापिस आ गए। तब तक बिजली आ चुकी थी। पढ़ाई का बिल्कुल मूड नहीं था और नींद से बुरा हाल था। घर पहुँचते ही हम गहरी नींद में सो गए। भगवान् कि कृपा से हम पास तो हो गए पर जो तैयारी हमने कि थी उसे याद करके आज भी हँसी आ जाती है।
उसके बाद मनोज विहार (K-171) कि वो रात, जब महाराज प्रियांशु को मच्छरों के गीत सुनना गवारा नहीं हुआ और उसने बिजली चले जाने पर कछुआ जलाया, वो भी अखबार पर रख कर और हमारे हीरो ने lighter भी अखबार के ऊपर ही छोड़ दिया और फिर लम्बी तान कर सो गया। अब कछुआ जल रहा है मेरे बिस्तर के सामने। जब कछुआ जला तो साथ में अखबार भी जला, अखबार जला तो lighter भी जला, और जैसे ही lighter जला, एक विस्फोट हुआ, lighter फटा और उड़कर सीधा मेरे मुंह के सामने से रॉकेट कि तरह निकल गया। प्रियांशु ने जो मिशन शुरू किया था वो सफल नहीं हुआ और उसका निशाना चूक गया। मेरी आँख बाल बाल बच गयी।
ऐसी ही न जाने कितनी रातें याद आई, शिप्रा सनसिटी (440-D) में जब बिजली जाती थी, तो छत पर चले जाते थे और उल्टी सीधी सब तरह कि बातें करते थे, हरकतें करते थे। अस्थाना जी तो अक्सर मोमबत्ती कि रोशनी में पढ़ाई करते थे।
बिजली के न होने से भी इतनी यादें जुड़ी हैं, मैंने सोचा नहीं था लेकिन जब कल रात फिर से मच्छरों से सामना हुआ तो सब याद आ गाया।
जब बात दिल से लगा ली तब ही बन पाए गुरु
18 hours ago