करीब ६ साल पहले मेरे दोस्त वैभव ने मुझे एक बात कही थी जो उसकी माँ ने उसे बताई थी:
"विकल्प से संकल्प फीका पड़ जाता है।"
मुझे ये बात आज भी भूली नहीं है क्योंकि मैंने इसे अनुभव किया है और यह शत प्रतिशत सही लगती है।
अगर गणितीय भाषा में बोलें तो:
संकल्प की दृढ़ता १ / उपलब्ध विकल्पों की संख्या
उदाहरण के तौर पर फ़र्ज़ कीजिये की आप एक रेलगाड़ी के डिब्बे में घुसे। आपका उद्देश्य एक सुखद सुलभ सीट हासिल करना... अगर आप देखते हैं की बहुत सारी सीट खाली हैं अर्थात आपके पास बहुत सारे विकल्प हैं, तो आप आराम से सोचेंगे की कहाँ बैठूं? लेकिन इसके विपरीत अगर डिब्बे में घुसकर आपको सिर्फ़ एक ही खाली सीट दिखाई पड़ती है तो आप एक क्षण भी गवाएँ बगैर उस खाली सीट को लपक लेंगे।
जैसे जैसे उपलब्ध सीटों की संख्या कम होती जायेगी, आपका सोचने का समय भी कम होता जाएगा और आप और तेज़ खाली सीट की तरफ़ दौडेंगे।
तो आपने देखा की विकल्प आपके संकल्प की दृढ़ता को कैसे प्रभावित करते हैं।
लेकिन थोड़ा आगे सोचें कि ऐसा क्यों होता है? जब हमारे पास अनेक विकल्प होते हैं तो हम सोचने लगते हैं कि इन सब में से कौन सा रास्ता सबसे आसान है और किसमे सबसे ज़्यादा फायदा है। स्तिथि का पूरा अवलोकन करने के बाद ही हम निश्चय लेते हैं कि हमें क्या करना है। अगर हमारे सामने सिर्फ़ एक ही दरवाज़ा (कोई दूसरा विकल्प नहीं) है तो हम पूरी दृढ़ता से उसकी तरफ़ बढ़ते हैं।
तो सुझाव ये है कि आप अपनी संकल्प कि दृढ़ता को बनाये रखें - विकल्पों का साया उस पर न पड़ने दें।
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on Tuesday, June 03, 2008
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