फिल्में - कल आज और कल

Posted by Praveen राठी in , , ,

आज कल राम गोपाल वर्मा की बॉलीवुड में काफ़ी हवा है - लोगों की फूँक निकाल कर रख दी है। ऐसी ऐसी फिल्में बना रहे हैं कि लोगों को सोचने का पूरा पूरा मौका मिल रहा है। फ़िल्म देखने से पहले लोग सोचते हैं - "देखें या नहीं?", फ़िल्म देखने के बाद लोग सोचते हैं - "ये मैंने क्या किया?"

आप सोच रहे होंगे की मेरी नज़र राम गोपाल वर्मा पर ही क्यों अटकी? दरअसल ये एक ही ऐसा महामानव है जो हर साल ढेरों फ़िल्म बनता है और फिल्मों का स्तर तो माशाल्लाह गिरता ही जा रहा है। मैं सोच रहा था कि जिस रफ़्तार से वर्मा जी लगे हुए हैं, और जिस जिस तरह की फिल्में वो बना रहे हैं, भविष्य क्या होगा? गौर करने की बात ये कि इनकी हर अगली फ़िल्म पिछली फ़िल्म से बुरी होती है।

आइये रामू जी की कुछ पुरानी, नई और आने वाली फिल्मों पर एक नज़र डालते हैं:

=> सरकार
===> सरकार राज
=====> सरकारी अनाज
('सरकार' बहुत ही बढ़िया फ़िल्म थी, 'सरकार राज' ठीक ठाक, अब इस कड़ी को यहाँ रोक देना चाहिए नहीं तो 'सरकारी अनाज', 'हमारा बजाज' या ... )

=> नाच
===> निशब्द
=====> नहीं हुई हद
(...शब्द ही नहीं हैं...)

=> डरना मना है
===> डरना ज़रूरी है
=====> डरना मजबूरी है
(जब डरना मना था, तब लोग डरे जब डरना ज़रूरी हुआ, तो लोग हँसे)

=> राम गोपाल वर्मा की आग
===> राम गोपाल वर्मा की फूँक
=====> राम गोपाल वर्मा की थूँक
(पहले आग लगाई, फिर फूँक से उसे बुझाने की कोशिश, नहीं बुझी तो अब थूँक ही बचता है जी)

राम राम! ये रामू जी किस प्रकार की फिल्मों की और बढ़ रहे हैं... कुछ समझ नहीं आ रहा है! रंगीला, सत्य, भूत, कंपनी जैसी उच्च कोटि की फिल्में बनाने वाले रामू कुछ मूड में नहीं लग रहे हैं ।

वैसे और भी कुछ अच्छी फिल्मों की मिट्टी पलीद होती नज़र आ रही है:

=> डॉन
===> डॉन टू
=====> कौन तू

=> मुग़ल-ऐ-आज़म
===> मान गए मुग़ल-ऐ-आज़म
=====> भाग लिए मुग़ल-ऐ-आज़म
(मधुबाला नहीं मना पाई मुग़ल-ऐ-आज़म को, मल्लिका शेरावत को बुलाना पड़ा, राखी सावंत आएँगी तो?)

=> कोई मिल गया
===> ककक्रिश
=====> कककककिशमिश
('क' की संख्या पर कोई लगाम लगाओ भाई ... )

'दौड़' बनी तो 'रेस' बनी, 'रन' बनी तो 'भागम-भाग' भी बनी, अब बारी है, 'जम्प' और 'उछल-कूद' की।

'टशन' आई, 'फैशन' आई, तो 'टेंशन' लाओ, 'पेंशन' लाओ - बूढे लोगों को भी देखने में मज़ा आए।

मैं यहीं ब्रेक लगता हूँ... ये लिस्ट तो बहुत लम्बी जा रही है।

डिस्क्लेमर (तथ्य): खाली बैठे व्यक्ति के दिमाग में कुछ भी आ सकता है, जैसे मेरे दिमाग में आया :)

This entry was posted on Thursday, August 28, 2008 at Thursday, August 28, 2008 and is filed under , , , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

3 Comments

good humour!

August 28, 2008 at 9:24 AM

बहुत प्यारे संयोग आपने जुटाए हैं। पढ कर मजा आ गया।

August 28, 2008 at 10:39 AM

अरे इस लिस्ट मे भी विक्रम भट्ट का नाम नही आया! imdb पर इनकी फिल््मोग्राफी देखो और फिर देखो!
वैसे रामू के साथ समस्या मुझे लगता है अहन्कार की.

August 30, 2008 at 4:04 PM

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