बेटियों की हकीकत...

Posted by Praveen राठी in , ,

कुछ दिन पहले मैंने तस्लीम भाई के ब्लॉग पर यह पंक्तियाँ पढीं जो दिल को भीतर तक छू गयीं ।
मुझे ये पंक्तियाँ इतनी उपयुक्त और वास्तविक लगीं की मैं इन्हें यहाँ लिखने से अपने आप को रोक नहीं पाया । और जब से मैंने इन पंक्तियों को पढ़ा है, मैं इन्हें १५-२० बार पढ़ चुका हूँ, और हर बार ये मुझे उतनी ही सच्ची, उतनी ही ताज़ी और उतनी ही दर्दनाक लगती हैं ।

बोये जाते हैं बेटे
और उग आती हैं बेटियाँ ।
खाद पानी बेटों में
और लहलहाती हैं बेटियाँ ।
एवरेस्ट की ऊंचाइयों तक, ठेले जाते हैं बेटे
और चढ जाती हैं बेटियाँ ।
कई तरह गिरते हैं बेटे
और संभाल लेती हैं बेटियाँ ।
सुख के स्वप्न दिखाते बेटे
जीवन का यथार्थ बेटियाँ ।
जीवन तो बेटों का है
और मारी जाती हैं बेटियाँ ।

उपर्युक्त पंक्तियाँ समाज की एक ऐसी बुरी तस्वीर दिखाती हैं जो जन साधारण को सोचने पर मजबूर कर देती हैं ।
सही बोलूँ तो ये पंक्तियाँ पढ़ते ही मुझे ख़याल आया २००३ की चंद्र प्रकाश द्विवेदी द्वारा निर्देशित फ़िल्म "
पिंजर" के उस गाने का, जिसके बोल हैं: "चरखा चलाती माँ"। इस गाने में भी कुछ इसी प्रकार का ज़िक्र किया गया है:

"बेटों को देती है महल अटरिया,
बेटियों को देती परदेस रे ।
जग में जनम क्यों लेती है बेटी,
आई रे जुदाई वाली रात रे ।"

मुझे इस फ़िल्म की हर बात पसंद है । निर्देशन, लेखन, छायांकन, कलाकार, गीत, संगीत, सब कुछ ...
खैर... मुझे उम्मीद है कि इन पंक्तियों को पढ़कर आप भी बेटियों का महत्व समझ गए होंगे और यह भी जान गए होंगे कि समाज में फैले भ्रूण हत्या जैसे अमानवीय अपराध को और फैलने से कैसे रोका जाए । क्या ख़याल है?

This entry was posted on Friday, May 16, 2008 at Friday, May 16, 2008 and is filed under , , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

2 Comments

very true ... it is difficult to believe that girls are still killed in our country. The people should be educated about this. Otherwise a day will come when on marriage cards it will be written:

"Suresh and Mahesh weds Meena"

May 18, 2008 at 12:55 PM

Good one..Keep writing..

May 29, 2008 at 10:13 PM

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