ज़ी न्यूज़ पर प्रसारित एक कार्यक्रम की टैग लाइन है ये.
क्या आपको कुछ साल पहले दूरदर्शन के किसी भी न्यूज़ रीडर की शक्ल याद है? शायद नहीं, लेकिन इतना ज़रूर याद होगा कि समाचार बोलते वक्त उनके चेहरे पर कोई भाव नहीं होते थे. आज देखिये, खबरों में कितने भाव, कितना मसाला, कितना ग्लामौर आ गया है.
ये भारतीय मीडिया को हो क्या गया है? हिन्दी समाचार चैनल तो सारी हदें पार कर चुके हैं. कुछ दिन पहले वैभव ने कुछ ब्रेकिंग न्यूज़ पेश की थी. पढ़ कर बहुत हँसा था. आज एक और ब्रेकिंग न्यूज़ मिली है. ज़रा गौर फरमाएं:
ये तो महज़ एक नमूना है. आप प्रतिदिन अपने इन समाचार चैनलों पर सास-बहु सीरियल भी देख सकते हैं.कितनी मेहनत करते होंगे हमारे हिन्दी न्यूज़ चैनल वाले इस तरह खबरें इकठ्ठा करने में. हैरत तो इस बात की है कि इतनी बड़ी दुनिया है, जहाँ हर समय कुछ न कुछ घटता रहता है, कुछ ऐसा जिसकी ओर जनता का ध्यान खींचना आवश्यक है, उन सब में से ये मिलता है दर्शकों के लिए.